Wednesday, May 21, 2014

बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से देशभर को काफी आशाएं

बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से देशभर को काफी आशाएं मोदी 26 मई को लेंगे प्रधानमंत्री पद की शपथ

Wednesday, December 16, 2009

कुछ यूं शुरु हुआ ये सफ़र...................

14 जुलाई 2008 मीडिया से जुड़़े चन्द युवाओं ने इण्डो पैसेफिक न्यूज़ (आईपीएन) हिन्दी समचार एजेंसी की नींव रखी। पत्रकारिता के क्षेत्र में न तो ये पहला कदम था और न आखि़री। हां इतना जरुर था, कि कुछ करने का जज़्बा लिये हमारे सामने एक चुनौती तो थी। चुनौती इस बात की चलती फिरती नौकरी में लात मारकर अपने मूल्यों की पत्रकारिता करने की। वो भी बिना पूंजी की। सबसे अहम सवाल था कि काम शुरु कैसे हो, कहां हो? शुरुआत में ही इस कदम की आलोचना हुई। राय मशविरे आये कि पूंजी के इस खेल में टिक पाना ही बहुत मुश्किल है, चलते रहना तो बहुत बड़ी बात है, लेकिन हमने इसे भी अपनों का आशीष माना औैर शुरुआत की। नयी-नयी मुश्किलें आयी, लेकिन हम डटे रहें, क्योंकि एक उम्मीद थी, अपनों का साथ था और सबसे बढ़ी बात कि अंजाम की फिक्र नहीं थी। आज आईपीएन की स्थापना के लगभग डेढ़ वर्ष बाद हम फिर एक कोशिश कर रहे हैं। ‘इण्डो पैसेफिक न्यूज’़ साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र के जरिये। आज जब समाचार पत्र पूंजीवादी समूहों का हिस्सा बन कर रह गये हैं। ऐसे में बिना पूंजी के, यकीन मानिये ‘बिना पूंजी के’ समाचार पत्र प्रकाशित करने की बात सोचना भी मज़ाक है। लेकिन आईपीएन इसे भी स्वीकार कर रहा है। हमारे पास न तो विज्ञापनों की भरमार है और न ही हम ख़बरों को ही विज्ञापननुमा बनाकर प्रकाशित करने की सोच रखते हैं। हां इण्डो पैसेफिक न्यूज़ विचारों का एक मंच है, जिसमें अपनी बात रखने का सभी को अधिकार है। चाहे वह कोई भी हो। लोकतंत्र की गरिमा भी यही कहती है। हमारे पास अगर कुछ है तो आपकी और स्नेहजनों की शुभकामनाएं। यही शुभकामनाएं हमारे लिए संजीवनी का काम करती रहेंगी। हम आशा करते हैं, कि आपकी उम्मीदों और जिन मूल्यों को लेकर आईपीएन की स्थापना हुई थी, उन्हीं पर इण्डो पैसेफिक न्यूज़ भी अग्रसर रहेगा।

और याद रखो.............

भले ही तुम काट डालो
मेरी जु़बान
लेकिन मेरी आंखे
सच बोलती रहेंगी
भले ही तुम
फोड़ डालो मेरी आंखे
लेकिन मेरी उंगलियां
बुलन्द होती रहेंगी
भले ही तुम तोड़ डालो मेरी उंगलियां
मगर
मेरा कलम हमेशा
रोटी और भूख की
बुनियादी परिभाषा लिखता रहेगा
भले ही तुम बहा डालो
मेरी कलम की सारी स्याही
लेकिन मेरा लाल-लाल लहू
कोरे कागज पर
नीला-नीला फैलकर
सच उगलता रहेगा
और जब तक मेरे जिस्म में
रक्त दौड़ता रहेगा
मैं खामोश नहीं बैठूंगा
और याद रखो
मेरी सांस रुकते ही
एक नहीं हज़ारों में
फिर से जी उठेंगे
और लाल लहू को
नीला करते रहेंगे...........................